इन दिनों कुछ कम कम लगने लगा है !
इक दरवाज़ा था जो कभी कभी बोलता था
उसे भी तेल लगा का चुप कर दिया है
इक सोफा था, जिसपर बैठने से कुछ मज़ेदार आवाजें सुनाई देती थी
वोह भी किसी कबाड़ी की दूकान में सजा दिया है
इक छिपकली आया करती थी,
जिसे मच्छरों के पीछे दौड़ता देख कुछ समय गुज़र जाता था
अब मच्छरों को धुएं से ही भगा देते हैं
इन दिनों कुछ कम कम लगने लगा है !
इक आइना था जिस पर पड़ी दरार से
हमें अपने ही दो अक्स दिखाई देते थे
उसे भी किसी ने बदल दिया है
वोह जो कुछ जोड़ी जूतों से लोगों के होने का एहसास होता था
उन जूतों को इक अलमारी में बंद कर दिया है
इन दिनों कुछ कम कम लगने लगा है !
कभी कभी हम खुद से ही बातें कर लेते थे
अब तो हम अपनी ही बातों से बोर हो गए हैं
इक डायरी के कुछ पन्नों पर कुछ कुछ लिखा करते थे
उस कलम की स्याही भी अब सूख चुकी है
गाने के कुछ रिकॉर्ड संजो के रखे थे
उन पर भी उम्र की धुल बैठ चुकी है
इन दिनों कुछ कम कम लगने लगा है
फिर भी ज़िन्दगी को उम्मीद की धूप से निखार रहे हैं
फिर भी दिल के कोनों में हरे पौधे सी खुशियाँ सींच रहे हैं
इन दिनों कुछ कम कम लगने लगा है
फिर भी कुछ ज्यादा ज्यादा चाहने लगे है
TEST COMMENT
ReplyDelete